अर्जुन नपुंसकता को प्राप्त मत हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप, हृदय की तुच्छ दुर्बलताओं को त्याग कर युद्ध के लिये खड़ा हो जा॥२.०३॥ श्री भगवान उवाच, भग्वद्गीता।
दादा ; सारे एक साँस में पढ़ गया और कार्यस्थली पर प्रिंट आउट निकलवा कर डिस्प्ले भी कर दिया. अदभुत प्रयत्न है आपका. क्या अंग्रेज़ी की तरह आत्मोन्नति को भी अपने ब्लॉग पर ले जा सकता हूँ. प्रणत संप
1 comments:
दादा ;
सारे एक साँस में पढ़ गया और कार्यस्थली पर
प्रिंट आउट निकलवा कर डिस्प्ले भी कर दिया.
अदभुत प्रयत्न है आपका.
क्या अंग्रेज़ी की तरह आत्मोन्नति को भी अपने ब्लॉग पर ले जा सकता हूँ.
प्रणत
संप
टिप्पणी देने के लिये क्लिक करें (Post a Comment)