Thursday, June 19, 2008

अर्जुन और नपुंसकता



Flower
अर्जुन नपुंसकता को प्राप्त मत हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप, हृदय की तुच्छ दुर्बलताओं को त्याग कर युद्ध के लिये खड़ा हो जा॥२.०३॥
श्री भगवान उवाच, भग्वद्गीता।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

1 comments:

sanjay patel said...

दादा ;
सारे एक साँस में पढ़ गया और कार्यस्थली पर
प्रिंट आउट निकलवा कर डिस्प्ले भी कर दिया.
अदभुत प्रयत्न है आपका.
क्या अंग्रेज़ी की तरह आत्मोन्नति को भी अपने ब्लॉग पर ले जा सकता हूँ.
प्रणत
संप