मल्टीनेशनल कम्पनियां और भारत के ग्रामीण परिदृष्य पर व्हार्टन नॉलेज के लेख में है कि असली चीज है लोगों को सुनना। पर कितने लोग हैं जो दूसरों की सुनते हैं? सब को कहते ही तो देखा है! ~ लेख पढ़ते मेरी प्रतिक्रिया।
गरीब सोचते हैं, अमीर हो जायें। अमीर सोचते हैं, ज्ञानी हो जायें। भोगी सोचते हैं, त्यागी हो जायें। अविवाहित सोचते हैं, विवाहित हो जायें। विवाहित सोचते हैं, मर जायें, कैसे मर जायें, कब मर जायें। जो नहीं है, उसकी तरफ दौड़ बनी रहती है। ~ आचार्य रजनीश।