Monday, June 30, 2008

समर्पण




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यदि तुम रूपान्तर चाहते हो तो बिना किसी दोषदृष्टि या विरोध-बाधा के, माता और उनकी महा शक्तियों के हाथों में सौंप दो, और अपने अन्दर उन्हें अपना काम बेरोक करने दो। तीन चीजें तुम्हारे साथ होनी चाहियें - चेतना, नमनशीलता और नि:शेष आत्मसमर्पण।
--- श्री अरविन्द, "माता" पुस्तक, अध्याय ६
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Sunday, June 29, 2008

विचारों की शक्ति




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विचार पहाड़ नहीं सरकाते। बुलडोज़र पहाड़ सरकाते हैं। विचार यह बताते हैं कि बुलडोज़र कहां काम करने चाहियें।
---- पीटर ड्रकर, "मैनेजिंग वनसेल्फ" में।

ज्ञानदत्त पाण्डेय

Saturday, June 28, 2008

वैश्वानर




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पर ओ जीवन के चटुल वेग
तू होता क्यों इतना कातर
तू पुरुष तभी तक, गरज रहा,
तेरे भीतर यह वैश्वानर!
--- रामधारी सिंह "दिनकर", उर्वशी में

ज्ञानदत्त पाण्डेय

Friday, June 27, 2008

धन



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धन एक विश्वजनीन शक्ति का स्थूल चिन्ह है। यह शक्ति भूलोक में प्रकट हो कर प्राण और जड़ के क्षेत्रों में कार्य करती है। बाह्य जीवन की परिपूर्णता के लिये इसका होना अनिवार्य है। इसके मूल और इसके वास्तविक कर्म को देखते हुये, यह शक्ति भगवान की है।
--- श्री अरविंद, "माता" पुस्तक, अध्याय - ४

ज्ञानदत्त पाण्डेय

Thursday, June 26, 2008

ईश्वर की शरण



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सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज:।
अहं त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:।
(अर्जुन सभी धर्मों को छोड़ मेरी शरण में आजा। मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, चिन्ता न कर।)
भग्वद्गीता में अर्जुन से श्री कृष्ण।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Wednesday, June 25, 2008

स्वप्न



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“सपने वे नहीं होते जो हम सोते समय देखते हैं, सपने वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।”
--- सृजनशिल्पी के ब्लॉग पर एक सूक्ति।

ज्ञानदत्त पाण्डेय

Tuesday, June 24, 2008

सर्व धर्म समान



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धरती पर मानव से सुन्दर सौगात नहीं

मन्त्रो, प्रार्थनाओं, अजानों, अर्चनाओं में

प्यार की कहानी से, बढ़ कर कुछ बात नहीं।

नाम देव, नानक, दादू, कबीर, तुकाराम,

अविराम रटते रहे, ईश्वर अल्लाह एक नाम।

---- शिवमंगल सिंह सुमन।


ज्ञानदत्त पाण्डेय

Monday, June 23, 2008

बड़े पद का घमण्ड



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नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं।
प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥
कोई संसार में ऐसा पैदा नहीं हुआ जिसे बड़ा पद पा कर घमण्ड न हो!
--- संत तुलसीदास

ज्ञानदत्त पाण्डेय

Sunday, June 22, 2008

जिन्दगी की जीत में यकीन



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तु जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत में यकीन कर।
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर।
--- शैलेन्द्र, फिल्मी गीतकार।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Saturday, June 21, 2008

कर्ण की मृत्यु पर श्री कृष्ण के उद्गार



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"युधिष्ठिर; भूलिये विकराल था वह,
विपक्षी था, हमारा काल था वह।
अहा; वह शील में कितना विनत था?
दया में धर्म में कैसा निरत था।
समझ कर द्रोण मन में भक्ति भरिये।
पितामह की तरह सम्मान करिये।
मनुजता का नया नेता उठा है।
जगत से ज्योति का जेता उठा है।"
(श्री कृष्ण, कर्ण की मृत्यु पर)
--- रामधारी सिंह "दिनकर", रश्मिरथी

ज्ञानदत्त पाण्डेय

Friday, June 20, 2008

बहानेबाजी



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१. अगर आप किसी चीज के लिये खड़े नहीं हो सकते तो हर चीज के लिये गिरते रहोगे।
२. गरीब लोग बहानेबाजी में धनी होते हैं और धनी बहानेबाजी में गरीब!
--- इण्टरनेट से कोटेशन
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Thursday, June 19, 2008

अर्जुन और नपुंसकता



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अर्जुन नपुंसकता को प्राप्त मत हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप, हृदय की तुच्छ दुर्बलताओं को त्याग कर युद्ध के लिये खड़ा हो जा॥२.०३॥
श्री भगवान उवाच, भग्वद्गीता।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Wednesday, June 18, 2008

चयन योग्य राजा के गुण



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राजा उसे चुनें जो इन चार गुणों से युक्त हो - प्रेम, ज्ञान, खुला दिमाग और किसी भी प्रकार के दुराव से मुक्त!
--- तिरुवल्लुवर, तिरुकुरल, ५२(८)
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Tuesday, June 17, 2008

धार्मिक सहिष्णुता



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मन्दिर में हो चांद चमकता,
मस्जिद में मुरली की तान।
मक्का हो चाहे वृन्दावन,
होवें आपस में कुर्बान॥
--- दद्दा माखनलाल चतुर्वेदी

ज्ञानदत्त पाण्डेय

Monday, June 16, 2008

झूठ



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झूठ शब्दों मे निहित नहीं है, छल करने में है। चुप्पी साध कर भी झूठ बोला जा सकता है। दोहरे अर्थ वाले शब्दों के प्रयोग द्वारा, किसी शब्दांश पर जोर दे कर, आंख के संकेत से और किसी वाक्य को विशेष महत्व दे कर भी झूठ का प्रयोग होता है। वस्तुत: इस प्रकार का मिथ्या प्रयोग साफ शब्दों में बोले गये झूठ की अपेक्षा कई गुना बुरा है।
--- रस्किन, बापू की कुटिया में लगी एक दफ्ती पर।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Sunday, June 15, 2008

वर्षा और स्वभाव



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बरसहिं जलद भूमि नियराऐं।
जथा नवहिं बुध बिद्या पाऐं॥
बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे।
खल के बचन संत सह जैसे॥
--- तुलसीदास, रामचरितमानस
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Saturday, June 14, 2008

ईश्वर से बातचीत



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प्र. :
क्या हम ईश्वर से बातचीत कर सकते हैं, जैसे श्री रामकृष्ण किया करते थे?
उ. (रमण महर्षि): जब हम आपस में बातचीत कर सकते हैं तो उसी प्रकार ईश्वर से क्यों नहीं कर सकते?
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"द टीचिंग्स ऑफ श्री रमण महर्षि" से।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

Friday, June 13, 2008

क्षमा



क्षमा सोहती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दन्त हीन विष रहित विनीत सरल हो।

--- "दिनकर"

Thursday, June 12, 2008

शान्ति


Swordजंग तो खुद एक मसला है, जंग क्या खाक हल देगी मसलों का।
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इसलिये ये शरीफ़ इन्सानों, जंग टलती रहे तो बेहतर है।
हम और आप सभी के आंगन में, शमां जलती रहे तो बेहतर है।
- "जागो मेरे पार्थ" में श्री चन्द्रप्रभ द्वारा उधृत साहिर लुधियानवी।

Wednesday, June 11, 2008

नम्रता और ऊंचा ओहदा



Obelix
हमारे ऊंचे ओहदे से हमारी नम्रता में कोई अन्तर नहीं आना चाहिये।
॥वो एक शक्स था जो तुझसे पहले तख़्त नशीं था।
उसको भी अपने खुदा होने का तुझसा ही यकीं था॥

Tuesday, June 10, 2008

कठिन समय में व्यवहार


3D Spinning Smiley
न मुंह छुपा के जियो, न सर झुका के जियो।
गमों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो।
(एक फिल्मी गीत)

Monday, June 9, 2008

आदमी उसी का नाम है।


Depressed
आंसुओं को थाम ले,
सब्र से जो काम ले,
आफतों से न डरे,
मुश्किलों को हल करे।
अपने मन की जिसके हाथ में लगाम है,
आदमी उसी का नाम है।
(एक फिल्मी गीत)

Sunday, June 8, 2008

कार्य की सफलता



दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
हे हनुमान जी, विश्व में जितने कठिन कार्य हैं, सब आपकी कृपा मात्र से सरल हो जाते हैं।