Sunday, June 15, 2008

वर्षा और स्वभाव



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बरसहिं जलद भूमि नियराऐं।
जथा नवहिं बुध बिद्या पाऐं॥
बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे।
खल के बचन संत सह जैसे॥
--- तुलसीदास, रामचरितमानस
ज्ञानदत्त पाण्डेय

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