Wednesday, April 29, 2009

धन को अहमियत


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धन तो उसकी कीमत से ज्यादा अहमियत मत दो। वह एक अच्छा नौकर है पर बहुत की बुरा मालिक!
--- अलेक्जेण्डर ड्यूमा।


Monday, April 27, 2009

एकाग्रता


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यह सूचना के प्राचुर्य का युग नहीं है, यह एकाग्रता में कमी का युग है।


Saturday, April 25, 2009

बदलाव


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अगर आप लोगों को सार्थक तरीके से बदलना चाहते हैं तो उन्हें समय और स्पेस में आत्म-ज्ञान विकसित करने का मौका दें।
पीटर सेंजे का कहना है - "लोग बदलाव का विरोध नहीं करते। लोग सिर्फ उनको बदलने का विरोध करते हैं।"


Thursday, April 23, 2009

सुबह की आपाधापी


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किसी सुदूर रेगिस्तानी गाँव की सुबह दिन चढ़ने तक अलसाई रहती है, वहीं शहर की सुबह ऐसे जगती है जैसे किसी बिच्छू ने काट खाया हो।
---- संजय व्यासटिप्पणी में

क्रोध


बुद्ध कहते हैं: “अगर तुम अपना दर्प अलग नहीं कर सकते तो तुम अपना क्रोध नहीं छोड़ सकते।”


Tuesday, April 21, 2009

साहस और हार


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अगर आप साहस दिखाते हैं तो सम्भव है कि कभी आप लड़खड़ायें और आपकी हार हो जाये। आपको मुंह छिपाना पड़े। 
पर अगर आप साहस नहीं दिखाते तो हार (और अपने आप से हार) अवश्यंभावी है!

Monday, April 20, 2009

जब भी गिरो, उठ खड़े होओ!


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पूरी जिन्दगी उस दौड़ जैसी है,
सभी ऊंचाइयों और गड्ढों से युक्त।
और जीतने के लिये आपको सिर्फ यह करना है –
जब भी गिरो, उठ खड़े होओ!
---- --- डी ग्रोबर्ग की एक कविता का अनुवाद।


Saturday, April 18, 2009

मौत का भय


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अब क्या डरना? मेरा बेटा छिन गया। पति भी नही रहे। मरना तो है एक दिन। मरने से क्या डरना? जो मरने से न डरें तो माफिया भी उनका क्या बिगाड़ सकता है?
---- रानी पाल, मृत राजू पाल की मां‍, जो अपने बेटे की हत्या का बदला लेने चुनाव मैदान में है।



Sunday, April 12, 2009

चुनाव


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चुनाव का वक्त आ गया है। लोमड़ियां मुर्गियों की सलामती की कस्में खाती दिखाई पड़ रही हैं। सब तरफ अमन चैन है। 
टी.एस. इलियट।

Friday, April 10, 2009

मनुष्य की प्रकृति


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जो रहीम उत्तम प्रकृति,का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।


Tuesday, April 7, 2009

घमण्ड


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घमंड होना पत्रकारिता के लिए अच्छा नहीं है. मैं युवा पत्रकारों से भी यही कहता हूँ कि पत्रकारिता के लिए घमंड सबसे बड़ा पाप है.
---- मार्क टली, बीबीसी हिन्दी पर साक्षात्कार में
(वैसे यह कथन अन्य सभी व्यवसायों के बारे में भी लागू होता है।)


Sunday, April 5, 2009

सुनार और लुहार


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जिया मोरा घबराये बाबुल!
बिन बोले रहा ना जाए।

मुझे सुनार के घर न दीजियो
मोहे जेवर कभी ना भाये।

बाबुल मेरी इतनी अर्ज सुन लीजिए
मोहे लुहार के घर दे दीजिए
जो मेरी जंजीरें पिघलाए।
 
----श्री प्रसून जोशी का गीत,  श्री लालकृष्ण अडवानी के ब्लॉग से


Friday, April 3, 2009

आत्म-मन्थन


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ढूंढता फिरता हूँ ऐ 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंज़िल हूँ मैं
--- अल्लामा इक़बाल, डा. चन्द्रकुमार जैन के ब्लॉग से उद्धृत।


Wednesday, April 1, 2009

अंतर्मन


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"तू जिसे बाहर है ढूंढता फिरता
वो ही हीरा तेरी खदान में है"
--- नीरज गोस्वामी, टिप्पणी में।