Sunday, September 12, 2010

प्रिय वचन और नाश


सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥

भय या लाभ की आशा वश; सचिव, वैद्य और गुरु अगर प्रिय वचन बोलते हैं; तो राज, धर्म और तन का शीघ्र नाश होना अवश्यम्भावी है। - तुलसीदास।

Saturday, September 11, 2010

घड़ियां और समय


पुराने समय में लोगों के पास घड़ियां नहीं होती थीं, पर सबके पास समय था। आज सबके पास घड़ियां ही घड़ियां हैं, पर कितना दुखद है कि उनके पास समय नहीं है! :(