सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥
भय या लाभ की आशा वश; सचिव, वैद्य और गुरु अगर प्रिय वचन बोलते हैं; तो राज, धर्म और तन का शीघ्र नाश होना अवश्यम्भावी है। - तुलसीदास।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥
भय या लाभ की आशा वश; सचिव, वैद्य और गुरु अगर प्रिय वचन बोलते हैं; तो राज, धर्म और तन का शीघ्र नाश होना अवश्यम्भावी है। - तुलसीदास।
0 comments:
टिप्पणी देने के लिये क्लिक करें (Post a Comment)