Sunday, April 5, 2009

सुनार और लुहार


flower trans
जिया मोरा घबराये बाबुल!
बिन बोले रहा ना जाए।

मुझे सुनार के घर न दीजियो
मोहे जेवर कभी ना भाये।

बाबुल मेरी इतनी अर्ज सुन लीजिए
मोहे लुहार के घर दे दीजिए
जो मेरी जंजीरें पिघलाए।
 
----श्री प्रसून जोशी का गीत,  श्री लालकृष्ण अडवानी के ब्लॉग से


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