Friday, June 27, 2008

धन



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धन एक विश्वजनीन शक्ति का स्थूल चिन्ह है। यह शक्ति भूलोक में प्रकट हो कर प्राण और जड़ के क्षेत्रों में कार्य करती है। बाह्य जीवन की परिपूर्णता के लिये इसका होना अनिवार्य है। इसके मूल और इसके वास्तविक कर्म को देखते हुये, यह शक्ति भगवान की है।
--- श्री अरविंद, "माता" पुस्तक, अध्याय - ४

ज्ञानदत्त पाण्डेय

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