Saturday, June 28, 2008

वैश्वानर




flower trans
पर ओ जीवन के चटुल वेग
तू होता क्यों इतना कातर
तू पुरुष तभी तक, गरज रहा,
तेरे भीतर यह वैश्वानर!
--- रामधारी सिंह "दिनकर", उर्वशी में

ज्ञानदत्त पाण्डेय

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