"युधिष्ठिर; भूलिये विकराल था वह,
विपक्षी था, हमारा काल था वह।
अहा; वह शील में कितना विनत था?
दया में धर्म में कैसा निरत था।
समझ कर द्रोण मन में भक्ति भरिये।
पितामह की तरह सम्मान करिये।
मनुजता का नया नेता उठा है।
जगत से ज्योति का जेता उठा है।"
(श्री कृष्ण, कर्ण की मृत्यु पर)
--- रामधारी सिंह "दिनकर", रश्मिरथी
ज्ञानदत्त पाण्डेय
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