Monday, June 16, 2008

झूठ



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झूठ शब्दों मे निहित नहीं है, छल करने में है। चुप्पी साध कर भी झूठ बोला जा सकता है। दोहरे अर्थ वाले शब्दों के प्रयोग द्वारा, किसी शब्दांश पर जोर दे कर, आंख के संकेत से और किसी वाक्य को विशेष महत्व दे कर भी झूठ का प्रयोग होता है। वस्तुत: इस प्रकार का मिथ्या प्रयोग साफ शब्दों में बोले गये झूठ की अपेक्षा कई गुना बुरा है।
--- रस्किन, बापू की कुटिया में लगी एक दफ्ती पर।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

4 comments:

अनूप शुक्ल said...

सही है।

इरफान अली सैफी said...

झूठ किसी भी रूप में बोला जाये वह कायरता की निशानी है। कायरता न हो तो झूठ की आवश्यकता ही नही होती।

Ashok Pandey said...

सुभाषितों वाले इस नये चिट्ठे के लिए धन्‍यवाद व बधाई। आप जीवन के सकारात्‍मक मूल्‍यों के प्रति हमेशा प्रेरणा देते हैं। ऋगवेद, गंगा मैया, सुभाषित - इनमें हमें जीवन संदेश ही तो मिलता है।

डा० अमर कुमार said...

अभिभूत हूँ, बस यह शिकायत है कि यहाँ के पते सूचना देर से मिली । सार्थक सोच से ओतप्रोत एक नूतन ब्लाग !