Wednesday, August 27, 2008

पुराना और नया




flower trans 
पुराणमित्येव न साधु सर्वं, न चापि सर्वं नवमित्यवद्यम्।
सन्त: परिक्ष्यान्यतरद् भजन्ते , मूढ़: पर प्रत्ययनेय बुद्धि।।
`जो पुराना है , वह न तो सबका सब ठीक है और जो नया है , वह केवल नया होने के कारण अग्राह्य भी नहीं है। साधु बुद्धि के लोग दोनों की परीक्षा करके ही स्वीकार-अस्वीकार करते हैं। दूसरों के कहने पर तो मूढ़ ही राय बनाते हैं।´
--- महाकवि कालिदास
संगीता पुरी जी के ब्लॉग गत्यात्मक ज्योतिष से।

ज्ञानदत्त पाण्डेय

1 comments:

राज भाटिय़ा said...

धन्यवाद ग्यान की बाते बताने के लिये