सन्त: परिक्ष्यान्यतरद् भजन्ते , मूढ़: पर प्रत्ययनेय बुद्धि।।
`जो पुराना है , वह न तो सबका सब ठीक है और जो नया है , वह केवल नया होने के कारण अग्राह्य भी नहीं है। साधु बुद्धि के लोग दोनों की परीक्षा करके ही स्वीकार-अस्वीकार करते हैं। दूसरों के कहने पर तो मूढ़ ही राय बनाते हैं।´
--- महाकवि कालिदास
ज्ञानदत्त पाण्डेय
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