Friday, August 8, 2008

शौर्य!






flower trans
सामने टिकते नहीं, वनराज, पर्वत डोलते हैं।
कांपता है कुण्डली मारे समय का व्याल।
मेरी बांह में मारुत, गरुड़, गजराज का बल है! 
--- पुरुरवा का कथन; "दिनकर"; उर्वशी में।
ज्ञानदत्त पाण्डेय

1 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर,धन्यवाद इन सुन्दर पक्त्तियो के लिये