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Saturday, December 27, 2008
भय
पुराने पड़ गए डर, फेंक दो तुम भी
ये कचरा आज बाहर फेंक दो तुम भी ।
---- दुष्यंत की गज़ल का अंश,
आभा जी
के ब्लॉग से।
ज्ञानदत्त पाण्डेय
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