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Saturday, December 13, 2008
प्रशंसा
परसंसा (प्रशंसा) हतभागीनी, दर-दर भटकन जाय ।
ज्ञानी जन नहीं रोचते, मूरख इस नहीं भाय ।।
----
श्री विष्णु बैरागी के ब्लॉग
से।
ज्ञानदत्त पाण्डेय
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