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पॉल ब्रण्टन: क्या आप मानते हैं कि आदमी अपना पुराना काम (जीविकार्थ) करते हुये भी आत्मज्ञान (enlightenment) प्राप्त कर सकता है?महर्षि रमण: क्यों नहीं? पर तब यह नहीं होगा कि पुराना व्यक्तित्व काम कर रहा है। तब धीरे धीरे उसका रूपान्तरण होगा और अन्तत: काम करते हुये भी उसकी चेतना उसके पुराने व्यक्तित्व की बजाय उसमें स्थित होगी।
1 comments:
कबीर दासजी का उदाहरण यहाँ लागू होगा.
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