Saturday, November 1, 2008

सोचना और बोलना


flower trans
मरा नहीं हूँ इसलिए सोचता हूँ। ज़िन्दा हूँ इसलिए बोलता हू। न सोचने न बोलने से आदमी मर जाता है। जो सोचा/जाना/समझा उसे आप के साथ बाँट सकूँ यही अभीष्ट है।
--- सुमन्त मिश्र "कात्यायन" के प्रोफाइल से।

ज्ञानदत्त पाण्डेय

0 comments: