Tuesday, June 8, 2010

मन और द्वैत


मन में बहुत कुछ चलता है। मन है तो मैं हूं|
मानसिक हलचल पर यह प्रारम्भ से टांक रखा था द्वैत। सरासर गलत।
मैं था, जब मन नहीं था। मैं रहूंगा, जब मन नहीं होगा। चिदानन्द रूप!

~ मेरे सोचने का एक पड़ाव


3 comments:

आभा said...

मन (मै) और ब्रहां सरासर सही ,कहा गलत हैं?

माधव( Madhav) said...

like a Bouncer from Lasith Malinga

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मै हूं तभी तो मन है