Tuesday, June 9, 2009

मुझे ही क्यों भगवान?



अर्थर ऐश, लॉन टेनिस का महान खिलाड़ी एड्स से मर रहा था। उसे दुनियां भर से पत्र मिल रहे थे। एक प्रशंसक ने लिखा - भगवान को तुम्हें ही क्यों चुनना था इस गलत बीमारी के लिये?

अर्थर ने उत्तर दिया - दुनियां भर में ५ करोड़ बच्चे टेनिस सीखते हैं। पचास लाख सीख जाते हैं। पांच लाख उसमें से प्रोफेशन टेनिस खेलने वाले बनते हैं। पचास हजार सरक्यूट में आ जाते हैं। पांच सौ ग्रेण्डस्लेम में पंहुचते हैं। उसमें से ४ सेमीफाइनल में और दो फाइनल में।

जब मैं ग्रेण्डस्लेम जीत कर कप उठा रहा था, तब मैने यह भगवान से नहीं पूछा - मुझे ही क्यों भगवान? और आज जब मैं कष्ट में हूं तो मुझे नहीं पूछना चाहिये - मुझे ही क्यों भगवान?


2 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हाथों में पतवार उसी के,
काबू में मझदार उसी के,
तेरी हार भी नहीं है तेरी हार,
उदासी मन काहे को करे?

वीनस केसरी said...

आज की पोस्ट ने तो लाजवाब कर दिया


(आपके इस ब्लॉग का कमेन्ट बॉक्स दो दिन से इंटरनेट एक्स्प्लोरर पर नहीं खुल रहा आज क्रोम पर खोल कर कमेन्ट कर रहा हूँ देखए क्या समस्या है...)

वीनस केसरी