Sunday, December 27, 2009
दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है.
~ विन्सेन्ट वान गॉग की जीवनी 'लस्ट फ़ॉर लाइफ़' से। कबाड़खाना में उधृत ।
Thursday, December 17, 2009
अनासक्त रस भोगी
मही नहीं जीवित है मिट्टी से डरने वालों से
ये जीवित है इसे फूंक सोना करने वालों से
ज्वलित देख पंचाग्नि जगत से निकल भागता योगी
धूनी बना कर उसे तापता अनासक्त रस भोगी।
~ दिनकर जी की कविता।
Sunday, December 13, 2009
बदलाव
आप साल दर साल वही व्यक्ति बने रहेंगे; सिवाय इसके कि आप किन लोगों से मिलते हैं, कौन सी पुस्तकें पढ़ते हैं और कैसी ब्लॉग पोस्टें नियमित लिखते हैं!
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