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धन तो उसकी कीमत से ज्यादा अहमियत मत दो। वह एक अच्छा नौकर है पर बहुत की बुरा मालिक!
--- अलेक्जेण्डर ड्यूमा।

यह सूचना के प्राचुर्य का युग नहीं है, यह एकाग्रता में कमी का युग है।

अगर आप लोगों को सार्थक तरीके से बदलना चाहते हैं तो उन्हें समय और स्पेस में आत्म-ज्ञान विकसित करने का मौका दें।
पीटर सेंजे का कहना है - "लोग बदलाव का विरोध नहीं करते। लोग सिर्फ उनको बदलने का विरोध करते हैं।"

किसी सुदूर रेगिस्तानी गाँव की सुबह दिन चढ़ने तक अलसाई रहती है, वहीं शहर की सुबह ऐसे जगती है जैसे किसी बिच्छू ने काट खाया हो।
---- संजय व्यास। टिप्पणी में।
बुद्ध कहते हैं: “अगर तुम अपना दर्प अलग नहीं कर सकते तो तुम अपना क्रोध नहीं छोड़ सकते।”

अगर आप साहस दिखाते हैं तो सम्भव है कि कभी आप लड़खड़ायें और आपकी हार हो जाये। आपको मुंह छिपाना पड़े। पर अगर आप साहस नहीं दिखाते तो हार (और अपने आप से हार) अवश्यंभावी है!

पूरी जिन्दगी उस दौड़ जैसी है,
सभी ऊंचाइयों और गड्ढों से युक्त।
और जीतने के लिये आपको सिर्फ यह करना है –
जब भी गिरो, उठ खड़े होओ!
---- --- डी ग्रोबर्ग की एक कविता का अनुवाद।

अब क्या डरना? मेरा बेटा छिन गया। पति भी नही रहे। मरना तो है एक दिन। मरने से क्या डरना? जो मरने से न डरें तो माफिया भी उनका क्या बिगाड़ सकता है?
---- रानी पाल, मृत राजू पाल की मां, जो अपने बेटे की हत्या का बदला लेने चुनाव मैदान में है।
चुनाव का वक्त आ गया है। लोमड़ियां मुर्गियों की सलामती की कस्में खाती दिखाई पड़ रही हैं। सब तरफ अमन चैन है। टी.एस. इलियट।

जो रहीम उत्तम प्रकृति,का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

घमंड होना पत्रकारिता के लिए अच्छा नहीं है. मैं युवा पत्रकारों से भी यही कहता हूँ कि पत्रकारिता के लिए घमंड सबसे बड़ा पाप है.
---- मार्क टली, बीबीसी हिन्दी पर साक्षात्कार में। (वैसे यह कथन अन्य सभी व्यवसायों के बारे में भी लागू होता है।)

जिया मोरा घबराये बाबुल!
बिन बोले रहा ना जाए।
मुझे सुनार के घर न दीजियो
मोहे जेवर कभी ना भाये।
बाबुल मेरी इतनी अर्ज सुन लीजिए
मोहे लुहार के घर दे दीजिए
जो मेरी जंजीरें पिघलाए। ----श्री प्रसून जोशी का गीत, श्री लालकृष्ण अडवानी के ब्लॉग से।

ढूंढता फिरता हूँ ऐ 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंज़िल हूँ मैं
--- अल्लामा इक़बाल, डा. चन्द्रकुमार जैन के ब्लॉग से उद्धृत।

"तू जिसे बाहर है ढूंढता फिरता
वो ही हीरा तेरी खदान में है"
--- नीरज गोस्वामी, टिप्पणी में।